जीवन मानो एक दावत हो
एपिक्टेटस
जीवन को इस तरह ग्रहण करें मानो वह एक दावत हो जिसमें आपको शालीनता के साथ पेश आना है। जब तश्तरियाँ आपकी ओर बढ़ाई जाएँ, अपना हाथ बढ़ाएँ और थोड़ा-सा उठा लें।
अगर कोई तश्तरी आपके पास से गुजर कर चली गई, तो आपकी प्लेट में जो कुछ मौजूद है, उसका स्वाद लेते रहें। अगर कोई तश्तरी अभी तक आपके पास नहीं लाई गई है, तो
धीरज के साथ अपनी पारी की प्रतीक्षा करें।
नम्रता, संयम और कृतज्ञता के इसी दृष्टिकोण के साथ अपने बच्चों, पति या पत्नी, कैरिअर और आर्थिक स्थिति के साथ पेश आएँ। कामना से अधीर होने की, ईर्ष्या करने
की और हड़पने के लिए झपटने की कोई जरूरत नहीं है। जब आपका समय आएगा, आपका प्राप्त आपको मिल जाएगा।
कोई शिकायत नहीं
अगर लोग आपके साथ सम्मानपूर्ण ढंग से पेश नहीं आते या आपके बारे में उलटी-पुलटी बातें करते हैं, तो याद रखें कि वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है
कि यही उचित है।
दूसरों से यह उम्मीद करना यथार्थपरक नहीं है कि वे भी आपको उसी तरह देखेंगे जैसे आप अपने आपको देखते हैं। अगर कोई गलत आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है, तो
इससे क्षति उसी की होगी-आपकी नहीं, क्योंकि अज्ञान का शिकार वह हुआ है- आप नहीं। आपने यह बात एक बार साफ-साफ समझ ली, तो दूसरों के द्वारा आपके आहत होने की
संभावना बहुत कम हो जाएगी - भले ही वे आपका तिरस्कार कर रहे हों। वैसी स्थिति में आप अपने आपसे कह सकते हैं : 'उस आदमी को ऐसा ही लग रहा होगा! लेकिन यह उसकी
अपनी समझ है!'
किताबों का उपयोग
यह दावा कभी न करें कि आपने किताबें पढ़ी हैं। यह दिखाएँ कि अध्ययन से आपके सोचने का तरीका बेहतर हुआ है, कि आप ज्यादा विचारशील और विवेकी व्यक्ति हुए हैं।
किताबों से मस्तिष्क का प्रशिक्षण होता है। उनसे बहुत मदद मिलती है। लेकिन कोई ऐसा सोचता है कि उसने किताबें पढ़कर उनकी सामग्री अपने दिमाग में भर ली है और यही
उसकी प्रगति है, तो यह उसकी भूल है।
महत्व आंतरिक सौंदर्य का है
स्त्रियों पर सुंदर दिखने का अतिरिक्त बोझ होता है, क्योंकि उनकी सुंदरता लोगों का ध्यान आकर्षित करती है। युवा होने के समय से ही पुरुष उनकी चापलूसी करने
लगते हैं या वे कैसा दिखती हैं, सिर्फ इसी आधार पर उनका मूल्यांकन करते हैं।
दुर्भाग्यवश, इससे स्त्रियों में यह भावना पैदा हो सकती हैं कि उनका काम पुरुषों को प्रसन्न करना है और इस तरह उनकी वास्तविक विशेषताओं का क्रमश: क्षय होने
लगता है। वे यह बाध्यता अनुभव करने लगती हैं कि अपने बाह्य सौंदर्य की वृद्धि के लिए प्रयास करें, इसमें समय लगाएँ तथा अपने वास्तविक व्यक्तित्व को कुंठित
करती रहें - क्योंकि दूसरों को प्रसन्न रखने का सरल उपाय यही है।
यही तरीका बहुत-से पुरुष भी अपनाते हैं। शरीर सौष्ठव और सुंदरता उनकी दिनचर्या का प्रमुख लक्ष्य हो जाता है।
बुद्धिमान लोगों की समझ यह बनती है कि संभव है दुनिया गलत या सतही कारणों से - जैसे, हम कैसा दिखते हैं, हमारा जन्म किस परिवार में हुआ है इत्यादि-इत्यादि -
हमें पुरस्कृत करती हो, लेकिन वास्तविक महत्व की बात यह है कि हमारा अंत:करण कैसा है और हम किस प्रकार का व्यक्तित्व बन रहे हैं।
पुरस्कारों की कीमत
जीवन के सभी पुरस्कारों के लिए हमें एक निश्चित कीमत चुकानी पड़ती है। और अकसर हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ यही होता है कि हम वह कीमत न चुकाएँ, क्योंकि वह कीमत
निष्ठा की भी हो सकती है; हमें किसी ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा करनी पड़ सकती है, जिसका हम सम्मान न करते हों।
(एपिक्टेटस ग्रीस के संत और दार्शनिक थे)
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इन स्त्रियों को ध्यान से देखिए। इन की आँखें किसी सुदूर लक्ष्य पर टँगी हुई हैं। चेहरे पर उदासी है। निराशा भी, जैसे ये बार-बार ठगी गई हों। परायों से ज्यादा
अपनों से। क्या ये उधर की ओर देख रही हैं जहाँ उनकी किस्मत लिखी जा रही है? इस देखने में क्या तनाव-भरी उत्सुकता तनाव नहीं है? या, इन के मनों में सामूहिक मंथन
चल रहा है कि अपने भविष्य की खोज में किधर कूच करें? सच तो यह है कि इन्हें शुरू से शुरू करना है – इसके बावजूद कि स्त्री संघर्ष की एक लंबी परंपरा है। राजीव
रंजन गिरि का कहना है कि अपनी-अपनी जमीन पर लड़ना तो हरएक को हैं, पर सफलता तो तभी मिलेगी जब किसी बड़े यूटोपिया के लिए सामूहिक प्रयत्न हो। यहीं आ कर स्त्री और
पुरुष, दोनों के स्वप्न एक-दूसरे में घुलने लगते हैं।
राममनोहर लोहिया
निबंध
कृष्ण
रोहिणी अग्रवाल
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सिक्का कहाँ से आया
अजित वेडनेरकर
फुटकर मुद्रा या छुट्टे पैसों के लिए सिक्के से बेहतर हिन्दी-उर्दू में कोई शब्द नहीं है। दोनों ही भाषाओं में मुहावरे के तौर पर भी इसका प्रयोग होता है, जिसका
अर्थ हुआ धाक या प्रभाव पड़ना। मूल रूप से यह लफ्ज अरबी का है मगर हिन्दी में सिक्के के अर्थ में अंग्रेजी से आया। हिन्दी
में फकत ढाई अक्षर के इस शब्द के आगे-पीछे कभी कई सारे अक्षर रहे हैं।
अरबी में मुद्रा की ढलाई के लिए इस्तेमाल होने वाले धातु के छापे या डाई को सिक्कः (सिक्काह) कहा जाता है जिसका मतलब होता है रुपया-पैसा,
मुद्रा, मुहर आदि। इसके दीगर मायनों में छाप, रोब, तरीका-तर्ज आदि भाव भी शामिल हैं। इसीलिए हिन्दी-उर्दू में सिक्का जमाना या सिक्का चलाना जैसे मुहावरे इन्ही
अर्थों में इस्तेमाल होते रहे हैं। पुराने जमाने में भी असली और नकली मुद्रा का चलन था। मुगल काल में सिक्कए-कासिद यानी खोटा सिक्का और
सिक्कए-राइज यानी असली सिक्का जैसे शब्द चलन में थे।
अरबों ने जब भूमध्य सागर के इलाके में अपना रौब जमाया और स्पेन को जीत लिया तो यह शब्द
स्पेनिश भाषा में जेक्का के रूप में चला आया। जेक्का का ही एक अन्य रूप सेक्का भी वहाँ प्रचलित रहा है। मगर वहाँ इसका अर्थ हो
गया टकसाल, जहाँ मुद्रा की ढलाई होती है। अब इस जेक्का यानी टकसाल में जब मुद्रा की ढलाई हुई तो उसे बजाय कोई और नाम मिलने के शोहरत मिली
जेचिनो के नाम से। जेचिनो तेरहवीं सदी के आसपास सिक्विन शब्द के रूप में ब्रिटेन में स्वर्ण मुद्रा बनकर प्रकट हुआ।
पंद्रहवीं सदी के आसपास अंग्रेजों के ही साथ यह चिकिन या चिक बनकर एक और नए रूप में हिन्दुस्तान आ गया जिसकी हैसियत तब चार रुपए के बराबर थी। यही चिक
तब सिक्का कहलाया जब इसे मुगलों ने चाँदी में ढालना शुरू किया। आज ब्रिटेन में सिक्विन नाम की स्वर्णमुद्रा तो नहीं चलती
मगर सिक्विन शब्द बदले हुए अर्थ में डटा हुआ है। महिलाओं के वस्त्रों में टाँके जाने वाले सलमे-सितारों जैसी चमकीली सजावटी सामग्री सिक्विन के दायरे में आती है।
जाहिर-सी बात है कि सजाने से किसी भी चीज की कीमत बढ़ जाती है। यह भाव स्वर्णमुद्रा की कीमत और उसकी चमक दोनों से जुड़ रहा है। देखा जाए तो अरबी के इस छापे की
छाप इतनी गहरी रही कि स्पेनी, अँग्रेजी सहित आधा दर्जन यूरोपीय भाषाओं के अलावा हिन्दी-उर्दू में भी इसका सिक्का चल रहा है।

एक अन्य स्वर्णमुद्रा थी गिन्नी जिसका चलन मुगल काल और अंग्रेजी राज में था। दरअसल गिन्नी का सही उच्चारण है गिनी जो कि उर्दू-हिन्दी में बतौर
गिन्नी कहीं ज्यादा प्रचलित है। मध्य काल में अर्थात करीब 1560 के आसपास ब्रिटेन में गिनी स्वर्णमुद्रा शुरू हुई। इसे यह नाम इसलिए मिला क्योंकि अफ्रीका के
पश्चिमी तट पर स्थित गिनी नाम के एक प्रदेश से व्यापार के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने इसे शुरू किया था। गौरतलब है कि सत्रहवीं सदी में पश्चिमी अफ्रीका के इस
क्षेत्र पर यूरोपीय देशों की निगाह पड़ी। अरसे तक यह प्रदेश पुर्तगाल और फ्रांस का उपनिवेश बना रहा। गिनी को अब एक स्वतंत्र देश का दर्जा प्राप्त है। इस क्षेत्र
की स्थानीय बोली में अर्थ होता है गिनी का अश्वेत व्यक्ति। आस्ट्रेलिया के उत्तर में प्रशांत महासागर में एक द्वीप समूह है न्यूगिनी जिसके साथ लगा गिनी नाम भी
अफ्रीकी गिनी की ही देन है। इस द्वीप का पुराना नाम था पापुआ। मलय भाषा परिवार के इस शब्द का अर्थ होता है घुँघराले बाल। स्पेनियों ने इस द्वीप को यह नाम यहाँ
के मूल निवासियों को इसी विशेषता के चलते दिया। दिलचस्प है कि अफ्रीकी गिनी का नाम भी उसके मूलनिवासियों के रंग के आधार पर पड़ा था। इस इस द्वीप का पश्चिमी
हिस्सा इंडोनेशिया का हिस्सा है जबकि पूर्वी हिस्सा पापुआ न्यूगिनी कहलाता है और स्वतंत्र देश है।
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